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लेखमंथ प्रतियोगिताःः मेरी धुंधली यादें

विषय ःलेखमंथ प्रतियोगिता

कविता ः मेरी धुंधली यादें

आज जब लेख का विषय पढ़ा तो
हो आई मेरी आँखें नम
जब बात गांव की हो तो
क्यूं न हों अंखिया नम

मैं गांव की ही बेटी हूं
खेत खलिहानों में पली बढ़ी
धान से चावल बनते देखा और
पौधे से आलू निकलते


वही मिट्टी की खुशबू बसी है मुझमें
बल्कि यह कहूँ कि मैं भी हूँ वैसी ही
तभी छल जाती हूँ आज शहरों के
दमघोंटू वातावरण में

बचपन की याद होती है ही कुछ ऐसी
नहीं भूलती वो संगी साथी
गायोँ और बछड़ों संग दौड़ लगाना
कितकित और पचास चोर में उन्हें छकाना

गर्म चूल्हे से उठती खुशबू
सिंकी गर्म रोटियों का स्वाद
देसी गायों का शुद्ध दूध और
उसपर जमी मोटी मलाई

ऊंचे पहाड़ों के नीचे बहती नदी का किनारा
उसके तट पर मित्रों के संग पिकनिक मनाना
शिक्षकों का खाना पकाना...

गांव की आबोहवा  होती बहुत निराली
स्वचछ हवा हो या बरसता पानी
मेरी यादें है बनी आज मेरी जुबानी
यही है मेरी गांव की कहानी।
****************
समाप्त💗💗
सीमा प्रियदर्शिनी सहाय✍️


लेखमंथ प्रतियोगिताःः मेरी धुंधली यादें

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